पहलवानी से लेकर फिल्मों में अपना जलवा दिखाने वाले रस्तमे हिन्द दारा सिंह रन्धावा का जन्म पंजाब में अमृतसर के धरमूचक गांव में जाट सिख परिवार में 19 नवंबर 1928 को हुआ था। बचपन से ही बलिष्ठ शरीर के दारा सिंह को पहलवानी का शौक रहा और अपने लाडले के इस शौक को पूरा करने में उनके पिता सूरत सिंह और माता बलवन्त कौर ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
बताया जाता है कि उनकी माताजी उन्हें भैंस के दूध के साथ बादाम की गिरियां, मक्खन और खांड में कूटकर खिलाती थीं और यही देसी नुस्खा इस पहलवान की अपराजेयता में संजीवनी का काम करता रहा। दारा सिंह और उनके छोटे भाई सरदारा सिंह ने कम उम्र में ही पहलवानी शुर कर दी और धीरे-धीरे गांव के अखाड़ों से लेकर देश-विदेश में अपने गांव का नाम रोशन किया।
मलेशियाई कुश्ती चैम्पियन बने -
दारा सिंह 1947 में सिंगापुर चले गए और उन्होंने वहां भारतीय स्टाइल की कुश्ती में मलेशियाई पहलवान तरलोक सिंह को हराकर मलेशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप जीती और फिर उन्होंने पेशेवर पहलवान के रप में सभी देशों में अपनी धाक जमा दी।
विश्व चैम्पियन किंगकांग को चटाई धूल -
दारा सिंह ने पेशेवर पहलवान के रूप में विदेशों में जमकर कुश्तियां लड़ीं और 1952 में भारत आए और यहां भी कुश्तियां लडते हुए 1954 में भारतीय चैम्पियन का खिताब हासिल किया। उन्होंने सभी राष्ट्रमंडल देशों में कुश्तियां लड़ीं और विश्व चैम्पियन किंगकांग को धूल चटाई।
1959 में राष्ट्रमंडल चैम्पियन बने -
दारा सिंह ने 1959 में कलकत्ता में राष्ट्रमंडल कुश्ती चैम्पियनशिप में कनाडा के चैम्पियन जार्ज गर्डियान्को और न्यूजीलैंड के जान डिसिल्वा के गुरर को तोड़ा और यह चैम्पियनशिप अपने नाम कर ली।
अपराजेय रहे -
वे फ्री स्टाइल कुश्तियों में एक मिसाल बन गए और 29 मई 1968 को अमरीका के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को हराकर प्री स्टाइल कुश्ती का विश्व चैम्पियन खिताब जीता। उन्होंने 1983 में कुश्ती से संन्यास लिया था और उस समय तक उन्हें अपराजेय पहलवान का दर्जा हासिल था। उन्होंने 500 से अधिक पेशेवर प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया।