मैं आपका अपना ‘राष्ट्रीयध्वज’ बोल रहा हूं। मेरे बारे में आपको संपूर्ण जानकारी नहीं दी गई। क्यों नहीं दी गई? कौन जिम्मेदार है? यह प्रश्न यहां आचित्यहीन है। अत: मैं स्वयं आपके सामने आया हूं। अपने बारे में आप सभी को बताने के लिए गुलामी की काली स्याह रात अंतिम प्रहर जब स्वतंत्रता के सूर्य के निकलने कासंकेत प्रभातबेला ने दिया, उस दिन 22 जुलाई 1947 को भारत की संविधान के सभा कक्ष में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मुझे विश्व एवं भारत के नागरिकों के सामने प्रस्तुत किया। यह मेरा जन्म पल था।
मुझे भारत का राष्ट्रीयध्वज स्वीकार कर सम्मान दिया। इस अवसर पर पंडित नेहरू ने बड़ा मार्मिक हृदयस्पर्शी भाषण भी दिया तथा मानवीय सदस्यों के समक्ष मेरे दो स्वरूप एक रेशमी खादी एवं दूसरा सूती खादी से बना ध्वज प्रस्तूत किया। सभी ने कर्तल ध्वनि के साथ मुझे स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया। आजादी के दीवानों के बलिदान व त्याग की लालीमा मेरे रंगों में बसी है। इन्हीं दीवानों के कारण मेरा जन्म संभव हुआ।
14 अगस्त 1947 की रात 10.45 बजे काउंसिल हाऊस के सेंट्रल हॉल में श्रीमति सुचेता कुपलानी के नेतृत्व में वंदे मातरम् के गायन से कार्यक्रम शुरू हुआ। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद व पंडित जवाहरलाल नेहरू के भाषण हुए। इस पश्चात श्रीमति हंसाबेन मेहता द्वारा अध्यक्ष मेरा सील्क वाला स्वरूप सौंपा गया।
श्रीमति हंसाबेन मेहता ने कहा कि- "आजाद भारत में पहला राष्ट्रध्वज जो इस सदन में फहराया जाएगा, वह भारतीय महिलाओं की ओर से इस राष्ट्र को एक उपहार है।" सभी लोगों के समक्ष यह मेरा पहला प्रदर्शन था। सारे जहां से अच्छा व जन-गण-मन के सामूहिक गाने के साथ यह समारोह सम्पन्न हुआ। 23 जून 1947 को मुझे आकार देने के लिए एक अस्थाई समिति का गठन हुआ था। इसके अध्यक्ष राजेंद्रप्रसाद तथा समिति में उनके साथ थे अब्दूल कलाम आजाद, के.एम.पाणीकर, श्रीमति सरोजिनी नायडू, के.एस.मुंशी, श्री राजगोपालाचारी और डॉ.बी.आर.अम्बेडकर। विस्तुत विचार-विमर्श के बाद मेरे बारे में निर्णय लिया गया और संविधान सभा में स्वीकृति प्राप्ती हेतु पंडित जवाहरलाल नेहरू को अधिकृत किया, जिन्होंने 22 जुलाई 1947 को सभी की स्वीकृति प्राप्त की और मेरा जन्म हुआ।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मेरे मान बताए, जिन्हें आपको जानना जरूरी है (जिसका उल्लेख भारतीय मानक संस्थान के क्रमांक आई.एस.आई.1-1951 संशोधन 1968 में किया गया) उन्होंने कहा कि भारत का राष्ट्रध्वज समतल तिरंगा होगा एवम आयातकार होकर इसकी लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 2:3 होगा। तीन समान रंगों की आड़ी पट्टीका होगी। सबसे ऊपर केशरिया, मध्य में सफेद तथा नीचे हरे रंग की पट्टी होगी। सफेद रंग की पट्टी पर मध्य में सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ का 24 सलाकाओं वाला चक्र होगा, जिसका व्यास सफेद रंग की पट्टी की चौड़ाई के बराबर होगा।
मेरे (राष्ट्रध्वज) के निर्माण में जो वस्त्र उपयोग में लाया जाएगा, वह खादी का होगा तथा यह सूती, ऊनी या रेशमी भी हो सकता है, लेकिन शर्त यह होगी कि राष्ट्रध्वज का सूत हाथ से काता जाएगा एवं हाथ से बुना जाएगा। इसमें हथकरधा सम्मिलित है। सिलाई के लिए केवल खादी के धागों का ही प्रयोग होगा। आपको बताऊं मेरे कपड़े का निर्माण स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के एक समूह द्वारा पूरे देश में एकमात्र उत्तरी कर्नाटक जिला धारावाड़ के गरग नामक गांव जो बंगलौर-पूना रोड पर स्थित है, वहां किया जाता है।
इसकी स्थापना 1954 में हुई। नियमानुसार राष्ट्रीय ध्वज के खादी के एक वर्ग फिट कपड़े का वजन 205 ग्राम होना चाहिए, हाथ से बनी खादी, जिसका प्रयोग राष्ट्रध्वज के निर्माण के लिए होता है, वह यहीं केंद्र है। परंतु अब राष्ट्र ध्वज का निर्माण क्रमश: अर्डिनेस क्योरिंग की फैक्टरी शाजापुर, खादी ग्रामोद्योगआयोग बंबई एवं खादी ग्रामोद्योग दिल्ली में होने लगा है। निजी निर्माताओं द्वारा भी राष्ट्रध्वज निर्माण पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन राष्ट्रीयध्वज के गौरव और गरिमा को दृष्टीगत रखते हुए यह जरूरी है कि केवल आई एस आई (भारतीय मानक संस्थान) की मोहर लगी हो।
मेरे (राष्ट्रीय ध्वज) के रंगों का अर्थ स्पष्ट किया कि केशरिया रंग-साहस और बलिदान का, सफेद रंग-सत्य एवं शांति का, हरा रंग-श्रद्धा और शौर्य का प्रतीक होगा तथा 24 सलाकों वाला नीला चक्र 24 घंटे सत्त प्रगति और प्रगति भी ऐसी जैसे कि नीला अनंत विशाल आकाश एवं नीला अथाह गहरा सागर। आपको लगता है कि आप भी अपने घरों व दुकानों पर राष्ट्रध्वज वर्षभर फहराए, लेकिन जब तक मेरे मान-सम्मान सहित फहराने का ज्ञान प्रत्येक नागरिक को न हो जाए, तब तक आपको यह छूट कैसे दी जाए? अब आपको वैद्यानिक रूप से 365 दिन (वर्षभर) ससम्मान ध्वजारोहण सूर्योदय के समय करके, सूर्यास्त के समय ससम्मान उतार सकते हैं, लेकिन मोटरकारों पर साधारण नागरिक को राष्ट्रीयध्वज फहराने पर प्रतिबंध है।